Menu
blogid : 7054 postid : 708384

ये पब्लिक है जो सब जानती है

मन की बात
मन की बात
  • 48 Posts
  • 94 Comments

लोकसभा चुनाव कि बिसात बिछ चुकी है रानीतिक दल अपनी अपनी चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटे है शाह और मात का खेल जो पिछले कई महीनो से जारी था अब धीरे धीरे चरम पर पंहुच रहा है। आरोप प्रत्यारोप का खेल जारी है हर कोई एक दुसरे पर आरोप लगा रहा है। इस सबके बीच है देश कि जनता जो अभी तक विश्वाश और अविस्वास के बीच झूल रही है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि अभी तक भी मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा है जंहा ये लगे कि जनता ने किसी एक दल को समर्थन देने का मन बना लिया है। शायद यही लोकतंत्र कि खूबसूरती जंहा अंतिम समय तक आप परिणामो का अंदाजा नहीं लगा सकते है।

अधिकाँश एग्जिट पोल नरेंद्र मोदी कि लहर के सहारे भाजपा को सबसे बड़े दल और एनडीए को सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरने का विश्वाश दिला रहे है। आश्चर्यजनक रूप से तीसरा मोर्चा जिसको लेकर राजनीतिक हलको में अभी सिर्फ कयास ही लगाये जा रहे है दुसरे स्थान पर नज़र आ रहा है। दस वर्षो के निराशाजनक कार्यकाल के कारण सत्तारूढ़ कांग्रेस को इस बार चुनाव में बड़ा झटका लगने कि बात कही जा रही है। यंहा अचानक ही सामने आयी और जनता कि निगाहो में चढ़ी आम आदमी पार्टी को दरकिनार नहीं किया जा सकता हालांकि दिल्ली में 49 दिन सरकार चला चुके इस दल को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी। जितनी तेज़ी से इस दल कि लोकप्रियता बढ़ी और अब जितनी तेज़ी से इस दल का विरोध बढ़ रहा है उस से इस दल के दिल्ली विधानसभा चुनाव कि तर्ज पर ही किसी अप्रत्याशित परिणाम कि उम्मीद कि जा सकती है।

देश कि बागडोर इस बार किसके हाथ में होगी इसका पता तो सम्भवतः मई माह में चलेगा। लेकिन सत्ता के लिए राजनीतिक दल क्या कुछ नहीं कर रहे है इसे आज पूरा देश देख रहा है। बहुत अधिक समय नहीं बीता है जब गुजरात दंगो को लेकर एनडीए से अलग होने वाले लोजपा के शीर्ष नेता अपनी राजनीतिक जमीन जो पिछले चुनाव में खिसक चुकी है को बचाने के लिए एक बार फिर एनडीए कि शरण में जाने को आतुर है। कांग्रेस सरकार द्वारा लाये गए बिल को सरकार द्वारा वापस लिए जाने के बाद जेल कि हवा खा चुके लालू प्रसाद यादव यदि इसके बाद भी बिल को बकवास बताकर बिल कि प्रतियां फाड़ने वाले राहुल गांधी का गुणगान कर रहे है तो इसे क्या कहा जा सकता है। पिछले कुछ समय में कदम कदम पर अपंने समर्थन से सरकार को गिरने से बचाने वाली समाजवादी पार्टी कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसती नज़र आती है। यदि कांग्रेस ऐसी है तो फिर ऐसी सरकार को समर्थन क्यों इसका जवाब समाजवादियों के पास नहीं है। समाजवादी पार्टी कि खालिस दुश्मन समझी जाने वाली बसपा भी सरकार को बचाने में सपा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है।कांग्रेस के साथ गठबधन कर मंत्री पद का सुख भोग रहे केंद्रीय मंत्री शरद पंवार हवा का रूख बदलते देख यदा कदा मोदी गान छेड़कर अपने लिए विकल्प बनाने का प्रयास करते है। कभी किसी दल को समर्थन न देने और न समर्थन लेने कि कसम खाने वाले केजरीवाल वक़्त आने पर धुर विरोधी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाते है। और वादे पूरे न कर पाने पर आँखों में दिल्ली कि सत्ता का ख्वाब लेकर जनता को मझधार में छोड़कर भाग निकलते है। खुद को औरों से अलग बताने वाली भाजपा के रणनीतिकार एनडीए का कुनबा बढ़ाने कि कवायद में लगे है और इसके लिए उन्हें बिहार कि सियासत के बाहुबली साधू यादव से भी परहेज़ नहीं है।
दरअसल यही राजनीति का असली चेहरा है जिसे जनता देखती तो है लेकिन ना जाने क्यों समझना नहीं जानती। ये पब्लिक है ये सब जानती है मैंने न जाने कितनी बार सुना है लेकिन मेरी समझ उस वक़्त जवाब दे जाती है जब सब कुछ जान ने का दावा करने वाली यही पब्लिक केंद्र कि कांग्रेस सरकार के घोटाले और महंगाई से परेशान होने के बावजूद सरकार को बचाने वाली समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में सत्ता सौंप देती है। यही पब्लिक 84 दंगो को लेकर हल्ला तो मचाती है लेकिन इसके बाद भी पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस कि सरकार बनवाती है। यही पब्लिक है जो गोधरा कांड का जिन्न कभी खत्म नहीं होने देती लेकिन फिर भी गुजरात में मोदी को मुख्यमंत्री बनवाती है। देश कि राजनीति में इन दिनों जो कुछ भी घटित हो रहा है उसमे सभी राजनीतिक दलों के कपडे उतर रहे है। पब्लिक सब कुछ देख भी रही है लेकिन सब कुछ जान ने के बाद भी क्युआ यह पब्लिक इस बार कुछ नया करेगी कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता। क्या आपको ऐसा लगता है कि जनता इस बार के चुनाव में वादाखिलाफी करने और सत्ता सुख के लिए अपने सिद्धांतो कि बलि देने वाले इन नेताओ को सबक सिखाएगी। ……. यदि ऐसा हुआ तो मैं मान लूँगा कि ये पब्लिक है जो सब जानती है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply