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वास्तव में पैसे पेड़ पर नहीं लगते मनमोहन जी …….

मन की बात
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अभी दो दिन पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह टीवी पर बोल रहे थे l मुझे बड़ी ख़ुशी हुई उन्हें बोलते देखकर क्योंकि हमारे देश के प्रधानमंत्री को बोलते देखना बड़ा दुर्लभ है l कभी कभार ही वह बोलते है लिहाज़ा मैं उनके बोलने को लेकर खासा उत्सुक था l बहरहाल वह बोले और बोले भी तो क्या बोले क़ि ” पैसे पेड़ पर नहीं लगते ” यही बात तो हम लोग कबसे उन्हें समझाने क़ि कोशिश कर रहे है क़ि पैसे पेड़ पर नहीं लगते लोग दिन रात मेहनत करके पैसे कमाते है यूं मंहगाई और भ्रस्टाचार करके क्यों उनकी मेहनत क़ि कमाई को लुटवा रहे है प्रधानमंत्री जी ?
बहरहाल मनमोहन जी बता रहे थे क़ि विकास दर आठ से ऊपर जा रही है इसे नौ अंको तक ले जाना है तो कुछ कड़े फैसले लेने होंगे यानी जो कुछ सरकार कर रही है वह अभी थमने वाला नहीं है l जब तक विकास दर नौ अंको तक पहुंचेगी गरीब आदमी का दम निकल चुका होगा l मैं एक आम आदमी के नजरिये से जब देखता हू तो मेरी समझ में नहीं आता क़ि ये सब आखिर हो क्या रहा है l एक गरीब आदमी जी डीपी विकास दर मुद्रास्फिर्ती ये सब कुछ नहीं जानता वह सिर्फ इतना जानता है क़ि वह शाम को घर में जो एक सौ रुपये कमाकर लाता है बढती महंगाई के कारण अब इन सौ रुपये से वह अपने परिवार को भरपेट खाना नहीं खिला सकता l ऐसे में भले ही देश क़ि विकास दर नौ के बजे बेशक नब्बे हो जाए या नौ हज़ार उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है l
इधर पीएम साहब बोल रहे है क़ि यदि रसोई गैस और डीजल के दाम न बढ़ाये जाते तो इस पर दी जा रही सब्सिडी एक लाख चालीस हज़ार करोड़ से बढ़कर दो लाख करोड़ हो जाती l माना सरकार एक लाख चालीस हज़ार क़ि सब्सिडी आप दे रहे है लेकिन क्या आपने सोचा क़ि यदि कोल ब्लाक आवंटन में एक लाख छियासी हज़ार करोड़ का घोटाला आपकी सरकार न करती तो इसमें से एक लाख चालीस हज़ार क़ि सब्सिडी निकलने के बाद भी छियालीस हज़ार करोड़ रुपये बचते और इस पैसे से गरीबो को और भी वस्तुओं पर सब्सिडी दी जा सकती थी l
प्रधानमंत्री जी कहते है क़ि अर्थवयवस्था बढ़ रही है देश आगे जा रहा है लेकिन बावजूद इसके गरीबो क़ि संख्या दिन प्रतिदिन क्यों बढ़ रही है इसका जवाब वह नहीं देते l
मैं अर्थशास्त्री तो नहीं हू चूँकि में एक गरीब आदमी हू तो उनकी कही बाते मेरे सर के ऊपर से निकल जाती है l मुझे सिर्फ इतना पता है क़ि मेरी तनख्वाह कुछ साल पहले जितनी थी आज भी कमोबेश उतनी ही है लेकिन कुछ साल पहले मैं जिस दाम पर पेट्रोल खरीदता था आज मुझे उसके दोगुने दाम चुकाने पड़ते है l एक आम आदमी क़ि कमाई में जितनी बढ़ोतरी हुई है उस से कई गुना अधिक महंगाई बढ़ी है नतीजा यह है क़ि लोगो ने अपने रोज़मर्रा के खर्च के अलावा खाने पीने में भी कटोती कर दी है l यदि इसी को विकासदर और जीडीपी आदि जो भी कुछ होता है का बढ़ना कहा जाता है तो धन्य है मनमोहन सरकार के उसने कुछ ही समय में इतनी तरक्की देश क़ि कर दी क़ि कल तक 20 रुपये में एक किलो चावल लाकर पेटभर खाने के बाद आराम से सोने वाला गरीब आदमी आज 20 रुपये में आधा किलो चावल लाकर बच्चो को खिला देता है और खुद भूखा रहकर रातभर जागने के बाद मनमोहन जी क़ि बताई हुई विकासदर के बारे में सोचकर मुस्कुराता है l मुस्कराता वह इसलिए है क़ि वह न तो कुछ कर सकता है और न ही कोई उसकी सुनता है l
एक गरीब आदमी जो पहले 400 रुपये में रसोई गैस खरीदकर उसे जैसे तैसे एक महीना चलाता था उसकी आय आज भी वही है लेकिन अब उसे उसी रसोई गैस के लिए करीब 800 रुपये चुकाने होंगे मनमोहन जी क़ि विकास दर वाली बात यंहा पर भी मुझे समझ नहीं आ रही है क़ि आखिर हर वस्तु के महंगा हो जाने से देश का विकास किस प्रकार संभव है l कल तक जो चीज हम 5 रुपये आज वह दस में और जल्दी ही 15 में खरीदेंगे लेकिन सरकारी नौकरी करने वालो क़ि बात छोड़िये बाकी कौन सा वर्ग है जिसकी आय महंगाई के साथ और महंगाई के अनुरूप बढ़ी है फिर आखिर कैसे वह महंगा सामान खरीद सकता है
प्रधानमंत्री जी क्षमा कीजिये आप बहुत लम्बे अरसे के बाद बोले वह ठीक है लेकिन क्या बोले यह मैं नहीं समझ पा रहा हूँ सिवाय इसके क़ि पैसे पेड़ पर नहीं लगते सही है क्योंकि सुबह से शाम तक मेहनत करने के बाद जब मुझे पैसे मिलते है तो मैं अच्छे से समझता हूँ के ये पैसे मैंने पेड़ से नहीं तोड़े है यह पैसे मैंने अपनी मेहनत से कमाए है l ये अलग बात है क़ि मेरे ये मेहनत के पैसे आपकी सरकार के किसी घोटाले क़ि भेंट चढ़कर पेड़ पर ही लग जाने वाले है …………

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