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पूरे देश में भ्रष्टाचार को लेकर हल्ला मच रहा है l जिसे देखो वही भ्रष्टाचार के लिए पानी पी पी कर सरकार को कोस रहा है l लेकिन हम ये क्यों भूल जाते है क़ि भ्रष्टाचार को हम खुद ही तो बढ़ावा देते है l शराब और पैसे लेकर जब हम किसी को वोट देंगे तो भला वह क्यों नहीं भ्रष्टाचार करेगा , रेड सिग्नल पार करने, बिना लाइसेंस के वाहन चलाते पकडे जाने पर हम तुरंत जेब से हरी पत्ती निकालकर पुलिस के हाथ पर रख देते है l क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है ? अपना काम करवाने के लिए सरकारी बाबू के रिश्वत देते हुए हम नहीं सोचते के ये रिश्वत है और ऐसा करने के बाद हम भी भ्रष्टाचारी हो रहे है l बैंक से पैसा निकलते समय , बिजली का बिल जमा करते समय , रसोई गैस बुक करते समय लाइन में लगते ही हम ये देखना शुरू कर देते है क़ि लाइन में कोई जानकार हमसे आगे तो नहीं है ताकि उस के जरिये हम और लोगो से पहले अपना काम कराकर निकल जाए यह भी तो भ्रष्टाचार ही है l
रेलवे टिकट खरीदने के लिए लाइन में लगना हमें पसंद नहीं है l हम किसी दलाल को ढूंढते है और उस से टिकट खरीद लेते है l और बाद में बोलते है क़ि हर जगह भ्रष्टाचारहै l यदि हम खुद दलालों से टिकट नहीं खरीदेंगे तो दलाल बेचारा क्या करेगा और फिर क्यों भ्रष्टचार होगा , जमीन खरीदते समय हम लोग सर्किल रेट पर रजिस्ट्री करते है यह खरीदी गयी जमीन क़ि वास्तविक कीमत से कई गुना कम होता है l स्टांप शुल्क बचाने के इस फर्जीवाड़े में हम तहसील के अधिकारियों को सुविधाशुल्क देते है l क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है यदि हम जमीन क़ि वास्तविक कीमत पर पूरा स्टाम्प शुल्क चुकाकर रजिस्ट्री कराये तो क्या हमें रिश्वत देने क़ि ज़रुरत होगी जी नहीं लेकिन क्या करे भ्रस्टाचार देश के नेताओ के साथ साथ हमारी जिंदगी में भी इस तरह है रच बस गया है क़ि हम चाहकर भी इस से अलग
नहीं हो पाते है l अपनी रोज़मर्रा क़ि जिंदगी में हम सुबह से शाम तक भ्रष्टाचार के इतने रंग देखते है l और चाहे अनचाहे इस भ्रष्टाचार का हिस्सा बनते है l देश में बढ़ रहे भ्रस्टाचार के लिए सरकार को कोसना बेहद आसान है लेकिन खुद को इसके खिलाफ खड़ा कर पाना बहुत मुश्किल l दरअसल भ्रष्टाचार क़ि जड़े अब इतनी गहरी हो चुकी है क़ि इस रोग से आज़ाद हो पाना अब नामुमकिन सा हो हो गया है l हालांकि यह असंभव भी नहीं है लेकिन ज़रुरत है भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ाई लड़ने क़ि लेकिन इसकी शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी l
पिछले दिनों एक जनप्रतिनिधि से मैं बात कर रहा था l वह हाल ही में चुनाव जीते थे l मेरे सामने उन्होंने कहा क़ि ” लोग बेशक नेताओ को कोसे लेकिन सच ये है क़ि जनता भी कुछ कम नहीं है जनप्रतिनिधि के शब्द कुछ ऐसे थे क़ि ”” जिस व्यक्ति के पास उसके परिवार क़ि चार वोट भी थी उसने भी चुनाव के दौरान उंनसे खुलकर सौदा किया यह सौदेबाजी शराब से लेकर पैसो तक रही l मजबूरन प्रत्याशी को पैसे से लेकर शराब और भी न जाने कितनी फरमाइशे वोटरों क़ि पूरी करनी पड़ी l उनके चुनाव का बजट कई गुना बढ़ गया और चुनाव परिणाम आने तक वह एक बहुत ही मोटी रकम खर्च कर चुके थे l जो निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित खर्च सीमा से कई गुना अधिक थी l अब इतनी रकम खर्च करने के बाद चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि इसकी भरपाई भ्रष्टाचार से नहीं करेंगे तो आखिर कंहा से करेंगे l मतलब साफ़ है भ्रष्टाचारक़ि शुरआत जनता से ही हुई और हम दोष नेताओ को देकर अपना पल्ला झाड रहे है l हालांकि मैं नेताओ को क्लीन चिट नहीं दे रहा क्योंकि नीति निर्धारण का कार्य सरकार के जिम्मे है तो इस सबके लिए वह सर्वाधिक जिम्मेदार है l लेकिन एक बड़ा सवाल यह है क़ि कब तक हम टी वी और अखबारों में खबरे पढ़कर और देखकर सरकार और नेताओ को कोसते रहंगे , और कब हम अपनी भी जिम्मेदारी समझकर भ्रष्टाचारके विरुद्ध एक निर्णायक जंग छेड़ेंगे …………
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