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घिनौना सच ………

मन की बात
मन की बात
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भारतीय मूल क़ि सुनीता विलियम्स के दोबारा अन्तरिक्ष में जाने का जश्न मना रहे लोगो को शायद ये तथ्य सोचने पर विवश कर दे क़ि हमारे देश में अभी भी लाखो क़ि संख्या में लोग सर पर मैला ( मानव मल ) ढोते है l इनमे सर्वाधिक संख्या महिलाओ क़ि ही है l इस घिनोने सच से हम सभी ने और सरकार ने आँखे मूँद रखी है l हम में से कई लोग सर के ऊपर मैला ढो कर ले जा रही इन महिलाओं को देखते है और इनसे बचकर निकलने का प्रयास करते है l सरकार द्वारा 1993 में मैला ढोने वालो को काम पर रखने, और शुष्क शौचालय के निर्माण को निषेध करने वाला अधिनियम पारित किया गया था l परन्तु बावजूद इसके यह सबकुछ हमारे देश में आज भी चल रहा है l हमारे मल को अपने सर पर ढोकर ले जाती इन महिलाओं को अपने आपसे भी घिन आती है लेकिन बावजूद इसके उनके लिए ये काम करना मजबूरी है l
सर पर मैला ( मानव मल ) ढोने वाली इन महिलाओं और पुरुषो के संबध में सुभाषिनी अली सहगल का लेख पढने के बाद मुझे अहसास हुआ के देश क़ि तरक्की और आधुनिकता का जो द्रश्य हम देख रहे है और हमें दिखाया जा रहा है वह एक मरीचिका से अधिक कुछ नहीं है l कल्पना कीजिये की मानव मल को अपने सर पर ढो कर ले जाती महिलाओं के दिल दिमाग क़ि हालत क्या होती होगी l ये महिलाए जब लोगो के मल को टोकरियों में भरकर अपने सर पर रखती है तो उन्हें अपने आप से घिन आने लगती है l काम से वापस लौट कर आने के बाद भी बजबजाते मैले क़ि दुर्गन्ध उनके जेहन से जाती नहीं है l उन्हें अपना शरीर कई कई बार नहाने के बाद भी इसी मैले से लिथड़ा नज़र आता है l आखिर कैसे ये लोग उन्ही मैला ढोने वाले हाथो से खाना खा सकते है l जो बरसात का मौसम लोगो को प्रेम, और पेड़ों से फूटने वाली कोंपलों क़ि याद दिलाता है उसी बरसात का इन लोगो के लिए मतलब है l टपकती हुई टोकरिया, जिनके बजबजाते मल से उनका शरीर , आत्मा , और मन सब भर जाता है l
शायद इससे ज्यादा इन लोगो क़ि स्थिति का वर्णन किया भी नहीं जा सकता l सभ्य समाज के लिए शर्मनाक कहे जाने वाले इस ” कथित काम ” को बंद करने के लिए प्रयास किये जा रहे है लेकिन मेरी समझ में नहीं आता के अगर प्रयास किये जा रहे है तो आजादी के इतने साल बाद भी मैला ढोने क़ि ये प्रथा क्यों जारी है l 19 वर्ष पूर्व मैला ढोने तथा किसी को इस कार्य में लगये जाने को गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद भी अगर आज लाखो क़ि संख्या में लोग ये घिनौना कार्य कर रहे है तो इस के लिए कौन जिम्मेदार है l उत्तर प्रदेश में करीब एक लाख लोग आज भी इस काम को करते है इसके अलावा बिहार और दुसरे कई प्रदेशो में भी ऐसे लोगो क़ि संख्या बहुत है l दुनिया भर में पुराने ज़माने के शुष्क शौचालयों को समाप्त किया जा चुका है l परन्तु हमारे देश में यह प्रथा आज भी जारी है l रेलवे स्टेशनों पर जब मैला उठाते लोगो पर नज़र पड़ती है तो मन वितृष्णा और घिन के साथ साथ आत्मग्लानी से भर जाता है क़ि हम उस देश के वासी है l जहा आज भी मानव ही मानव के मल को सर पर उठाते है l
इस घ्रणित कार्य को बंद करने के लिए रास्ट्रीय सफाई आयोग का गठन किया गया लेकिन आयोग क़ि सिफारिशों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया l यह मामला कोर्ट तक भी गया कोर्ट द्वारा देश में मैला ढोने वालो के संबध में सरकार से जानकारी मांगे जाने पर हमारे नीति नियंताओ ने ऐसी तस्वीर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत क़ि क़ि सच जानकर भी कोर्ट कुछ न कर सका l इस सबंध में राज्य सरकारों का जवाब है के देश में कोई व्यक्ति अब मैला ढोने का कार्य नहीं कर रहा है l इस जवाब के पीछे छिपे सच से हम और आप भली भांति वाकिफ है l हम में से कई लोग सर पर मैला ढोने वाले इन लोगो से रोज़ मिलते है जब यह लोग अपना यह घिनौना काम करते है l और हम भी उस समय अपनी नाक और आँखे बंद करके इस बजबजाते घिनौने सच से मुह मोड़ लेते है l सच तो ये है क़ि हमें भी कही न कही वही सब कुछ देखने क़ि आदत पड़ चुकी है जो हमें अच्छा लगे और जो हमें दिखाया जा रहा है l अन्यथा समाज के इस घिनौने सच को हम यूं नज़रंदाज़ न करते l
निश्चित तौर पर इसके लिए भी कंही न कंही हमारे नीति नियंता ही जिम्मेदार है l जो इण्डिया साइनिंग और अतुल्य भारत का रंगीन चश्मा हमारी आँखों पर लगाकर हमें हमारे ही समाज क़ि इस बुराई को देखने नहीं दे रहे है l

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