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हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश क़ि खाप पंचायतो के फरमानों को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे है l इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है l बागपत के असार गाँव में हुई 36 बिरादरी क़ि पंचायत में फरमान सुनाया गया है क़ि अपनी मर्ज़ी से शादी ( प्रेम विवाह ) करने वाले युवक युवती गाँव में नही रह सकेंगे , साथ ही 40 वर्ष से कम उम्र वाली महिलाए और युवतिया न तो अकेले बाज़ार जा सकेंगी और न ही मोबाइल का प्रयोग कर सकेंगी l पंचायत के इस अजीबोगरीब फैसले को लेकर बहस मुबाहिसो का दौर जारी है l जाहिर से बात है क़ि पंचायत के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रियाएं सुनने को मिल रही है l महिलाओ और युवतियों को अकेले बाज़ार न जाने देने के पंचायत के फैसले के अगले दिन ही दिल्ली के अस्पताल में एक गर्भवती महिला के साथ दुराचार का प्रयास किया गया l क्या पंचायत इसके लिए भी महिला को दोषी ठहराकर अब उपचार के लिए महिलाओं के अस्पताल जाने पर भी रोक लगा देगी l
गुवाहाटी में अगर एक सत्रह वर्षीया किशोरी के साथ बीस से अधिक लोग मिलकर सरेआम बदसलूकी करते है तो क्या इसमें कसूर पूरी तरह से उस लड़की का है l क्या उसने लोगो से कहा के आओ और उसके साथ ऐसा बर्ताव करो के किसी की भी आँखे शर्म से झुक जाए l पिछले दिनों मेरे पास के एक गाँव में ऐसे ही पंचायत के एक फैसले में लडकियों के घर से बाहर जाकर काम करने पर रोक लगा दी गयी थी l इस से कई घर जिन्हें उन घरो की बेटिया ही चला रही थी ऐसे घरो में लोगो के सामने भूखो मरने की नौबत आ गयी थी l बाद में मीडिया में मामला आने और सभी वर्गों के विरोध के चलते पंचायत को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था l
क्या समाज का माहौल सिर्फ महिलाओं के कारण ही खराब हो रहा है l क्या उनके ऊपर अंकुश लगाने भर से यह माहौल सही हो जायगा क्या महिलाओं को घर बैठा देने से महिला अपराधो पर रोक लगना संभव है l आंकड़े बताते है की महिला उत्पीडन के अधिकाँश मामलो में उसके किसी करीब अथवा परिवार या रिश्तेदार ने ही उसका उत्पीडन किया l अब पंचायत घर के ही इन भेडियो से कैसे महिलाओं को बचाएगी l क्या कुछ दिन बाद महिलाओं को घर में रहने के बजाय उन्हें एक कमरे में बंद रहने का फरमान सुना दिया जाएगा l कल्पना कीजिये की यदि महिलाओं को बाहर आने जाने की इजाज़त न होती तो क्या कोई लड़की कभी कल्पना चावला या सुनीता विलियम्स बन सकती थी l
पंचायतो के ये फैसले उसी पुरुषवादी मानसिकता का प्रमाण है जहाँ जिसके तहत महिलाओ को पुरुषो के सामान नहीं समझा जाता उल्टा उन्हें उपभोग की वस्तु समझकर पाँव के नीचे रखने की बात कही जाती है और किसी भी घटना के लिए उन्ही के सर पर दोष मढ़कर उन्हें सजा सुना दी जाती है l प्रेम विवाह करने की सजा सिर्फ लड़की भुगते ये कहाँ तक जायज़ है l इस के लिए लड़का भी कम दोषी नहीं है l लिहाज़ा यदि प्रेम विवाह अपराध है तो इसकी सजा भी दोनों को बराबर मिलनी चाहिए l फिर किसी एक लड़की की गलती की सजा समाज की सभी दूसरी लडकियों को भी सुना देना कहाँ तक सही है l दुर्भाग्य की बात है जब लड़कियां हर क्षेत्र में पुरुषो के साथ कंधे से कन्धा मिलकर कार्य कर रही है उस दौर में ये पंचायते उन्हें घरो में बंद रहने का तुगलकी फरमान सुना रही है l संविधान में सभी को बराबरी और अपनी मर्ज़ी से जीवन जीने का अधिकार दिया है l समाज में माता पिता और घर के बड़े बुजुर्गो पर बच्चो को अनुशासित रखने की जिम्मेदार होती है l बच्चो को अनुशासित करने के लिए अभिभावक कई बार उन पर कुछ बंदिशे भी लगाते है l उन्हें इसका अधिकार भी है उनके यह फैसले बच्चो के हित में होते है l लेकिन इन पंचायतो को महिलाओं पर बंदिशे लगाने का अधिकार किसने दे दिया l पंचायत कैसे किसी महिला को उसके जीवन जीने के तौर तरीके बदलने के लिए मजबूर कर सकती है l
महिला शास्क्तिकरण के युग में पंचायतो के ये तुगलकी फरमान चोंकाने के साथ साथ उद्वेलित भी करते है l आश्चर्यजनक रूप से पंचायतो के इन फरमानों पर शासन और प्रशासन भी चुप्पी साधकर बैठ जाता है l परंपराओं और समाज व बिरादरी की इज्ज़त के नाम पर आखिर कब तक महिलाओं को यूं उनके घरो में कैद किया जाता रहेगा क्या उन्हें अपने तौर तरीको से जिंदगी जीने की आज़ादी नहीं है l
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