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आस्था बनाम विकास…………

मन की बात
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गंगा की अविरलता को लेकर हरिद्वार में अनशन कर रहे प्रो. जी डी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का प्रयास काबिलेतारीफ है l परन्तु उनके अनशन पर उठ रहे सवालो को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता l

गंगा को हमारे देश में माँ का दर्जा दिया जाता है यह नदी करोडो लोगो की आस्था का प्रतीक है l मान्यता ही नहीं बल्कि करोडो लोगो का विश्वास है की पतितपावनी गंगा में एक डुबकी लगाने मात्र से जन्म जन्मान्तर के पाप मिट जाते है l शायद लोगो की इन्ही भावनाओं के चलते कुछ समय पूर्व गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया गया था l इसी नदी की अविरलता को बनाये रखने के लिए स्वामी सानंद हरिद्वार में पिछले कई दिनों से आमरण अनशन कर रहे है l

स्वामी सानंद का अनशन सही है या गलत यह बहस का मुद्दा हो सकता है l परन्तु उनके अनशन पर उठ रहे सवालों को भी नकारा नहीं जा सकता l ६५ % वन भूभाग वाले उत्तराखंड राज्य की आर्थिकी यंहा उपलब्ध प्राकर्तिक संशाधनो पर निर्भर करती है l उर्जा प्रदेश के तमगे वाले उत्तराखंड में उर्जा उत्पादन की असीम संभावनाए मौजूद है उर्जा उत्पादन ही यहाँ की आय का प्रमुख श्रोत है परन्तु बावजूद इसके यंहा मौजूद प्राकर्तिक संसाधनों का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है l कभी दुसरे राज्यों को बिजली बेचने वाले उत्तराखंड को आज खुद बिजली संकट का सामना करना पड़ रहा है तथा बिजली के लिए दुसरे राज्यों के सामने हाथ फैलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है इसका एक बड़ा कारण है की यंहा उपलब्ध संसाधनों को सही से दोहन नहीं किया जा रहा है यदि यंहा जल विधुत परियोजनाए स्थापित की जाए तो राज्य से दुसरे प्रदेशो को भी बिजली सप्लाई की जा सकती है

इसके लिए यंहा बिजली की नयी परियोजनाए शुरू किये जाने की आवश्यकता है जिसके लिए गंगा पर बाँध बनाये जाने की ज़रुरत पड़ेगी तभी इस छोटे से राज्य का विकास हो सकेगा परन्तु यंहा विकास पर आस्था भरी पड़ती नज़र आ रही है l राज्य गठन के बाद बिजली की उपलब्धता को देखते हुए कम समय में ही यंहा सैकड़ों फेक्ट्रियां लगी तथा राज्य के विकास का क्रम तेज़ हुआ l परन्तु आस्था के नाम पर एक के बाद एक यंहा शुरू हुई जल विद्युत परियोजनाओ को बंद किया जाता रहा और आज आलम ये है की राज्य में में इस समय कोई भी नयी जलविद्युत परियोजना प्रस्तावित नहीं है तथा पुरानी परियोजनाओ को कुछ लोगो के अनशन व् आन्दोलन के चलते बंद किया जा चूका है l नतीजा ये हुआ है की यंहा लगी कई फेक्ट्रिया बंद हो चुकी है और कुछ बंदी की कगार पर है इस से प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ रही है l इसका सीधा असर प्रदेश के विकास पर पड़ा है l प्रदेश में मांग के अनुसार बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए दुसरे राज्यों से बिजली खरीदिनी पड़ रही है ऐसे में जो धन प्रदेश के विकास पर खर्च होना है वो बिजली पर खर्च हो रहा है l जैसे जैसे यंहा बिजली की मांग बढ़ेगी इस मांग को पूरा करने के लिए नयी परियोजनाओं को स्थापित किया जाना ज़रूरी होता जाएगा परन्तु आस्था के नाम पर इन परियोजानो के विरोध के चलते यह मुमकिन नज़र नहीं आ रहा है l

सरकार भी लोगों की आस्था से खिलवाड़ कर अपने लिए मुश्किल हालात नहीं पैदा करना चाहती इसीलिए चुप्पी साधे बैठी है l सवाल ये है की क्या आस्था के नाम पर विकास को तिलांजलि देना सही है या नहीं l गंगा की अविरलता को लेकर आन्दोलन कर रहे स्वामी सानंद के पास इन सवालो के जवाब है या नहीं कोई नहीं जानता न ही कोई उनसे यह सवाल पूछता है l एक और महत्त्वपूर्ण बात ये भी है की हरिद्वार में अनशन पर बैठे स्वामी सानंद को गंगा की अविरलता की तो चिंता है परन्तु यंहा गंगा में गिरने वाले आश्रमों के नालो और सीवर उन्हें नज़र क्यों नहीं आते हरिद्वार के बाद उत्तर प्रदेश में गंगा में बढ़ता प्रदूषण भी उन्हें क्यों नज़र नहीं आता l क्या कभी वह इसके लिए भी अनशन पर बैठेंगे l क्या आस्था के नाम पर विकास से समझोता करना उचित है l क्या इस पर कोई बीच का रास्ता नहीं निकाला जा सकता जिस से लोगो की आस्था व् भावनाए प्रभावित न हो और राज्य का विकास भी बाधित न हो l क्या कोई इसके लिए पहल करेगा करेगा………और अंत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सवाल क्या स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन राजनीति से प्रेरित है l क्योंकि पिछले 60 वर्षो में गंगा की अविरलता और गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए कई आन्दोलन हुए लेकिन बावजूद इसके गंगा आज भी मैली है और दिन प्रतिदिन और भी मैली होती जा रही है l

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